रानीपुर में हमें पर्याप्त मात्रा में शहद नहीं मिल सकी क्योंकि बदलते मौसम के कारण मधुमक्खियां आक्रोशित हो गई थीं और डंक मार रही थीं..!!
खैर,कई मुश्किलों का सामना करने के बाद हम वहां से शहद लेकर अपनी टीम के साथ मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित विंध्य पर्वत की श्रंखलाओं की ओर चल पड़े क्योंकि गांव वालों ने बताया कि विंध्य पर्वत की चोटियों पर मधुमक्खियों के सैकड़ों छत्ते लगे हुए थे, पर वहां जाने का फैसला हमारे लिए जोखिम से भरा था क्योंकि गांव वालों के अनुसार उन पहाड़ियों पर आदमखोर जंगली जानवर तो थे ही लेकिन उसके अलावा भी विंध्य की घाटियों में अनेकों रहस्यमई गुफाएं और जल धाराएं थीं।
खैर! रानीपुर से अपनी टीम और 3 गांववासियों के साथ हम विंध्य की घाटियों की तरफ चल पड़े।
चूंकि पहाड़ी रास्तों के बीच हम जीप से ज्यादा दूर नहीं जा सकते थे तो जीप रास्ते में खड़ी करनी पड़ी और उसके आगे हम पैदल ही चल पड़े.....हमें एक पहाड़ी के किनारे से खाई में उतर कर दूसरी पहाड़ी पर चढ़ना था और गांव वालों की कहानियां याद करके हर कोई डरा-सहमा था।
हमने टीम के साथ पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे,ये सफर हमारे लिए रोमांचक और डरावना होता जा रहा था।
पहाड़ी पर चढ़ते दौरान हमने देखा वो घाटियां जो बाहर से इतनी घनी और सुंदर लग रही थीं वास्तव में वो कोई जंगली झाड़ियां नहीं बल्कि महुआ, जंगली तुलसी,अश्वगंधा और गोंद जैसी जड़ीबूटियों ने प्रकृति की आगोश में अपना आशियाना बना रखा था।विंध्य की वो घाटियां आज भी भारतीय आयुर्विज्ञान की आधारशिलाओं को समेट कर प्रकृति के अद्भुत रहस्यों से हमें रूबरू करा रहीं थी।
चलते-चलते हम पहली पहाड़ी के एक छोर को पार कर चुके थे और अब समय था खाई में उतरकर उस पहाड़ी पर चढ़ने का जहां मधुमक्खियों का बसेरा था।
चूंकि धूप और पथरीले रास्तों की वजह से हमे थकान महसूस हो रही थी तो बीच में महुए के कुछ छाया दार पेड़ों के नीचे बैठ कर हम आराम करने लगे और वहां हमने देखा कि पिछली रात तेज हवा के कारण काफी महुआ जमीन पर पड़ा हुआ था तो हमारे टीम के सदस्यों के साथ हमने कुछ महुआ इकट्ठा किया जिससे हम महुए की पूड़ी,ठेकुआ और भी खाने की कई चीजें बना सकते हैं...!
थोड़ी देर आराम करके हम वहां से खाई की तरफ चल पड़े।
कुछ दूर चलने पर हमें लाठी बांस(stick bamboo) जिसे आज कई तरह की शिल्प सज्जा (craft decoration) की वस्तुएं बनाने में उपयोग किया जाता है,के घने जंगल मिलना शुरू हुए।
630 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए जंगल में जहां गांव वालों के अनुसार लगभग 150 बाघों के होने का अनुमान था,दोपहर की कड़कती धूप में जंगल के सन्नाटे को चीरती हुई डरावनी आवाजों के बीच हम कुछ 7,8 लोग आपके घर तक पहुंचाने के लिए पूर्णतया शुद्ध शहद के साथ आपके उत्तम स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद की औषधियों की तलाश में अपनी जान को जोखिम में देख कर डरे हुए चुपचाप आगे बढ़े जा रहे थे। अचानक!
झाड़ियों के बीच से सरसराहट की आवाज ने सबके कदम रोक कर सांसे बढ़ा दीं...सबने पहले चारो तरफ देखा तो झाड़ियों में कुछ साफ दिखाई नहीं दिया फिर सबने एक दूसरे की आंखों में देख कर सब ठीक होने का इशारा किया और महुए की भीनी खुश्बू के साथ डर की लंबी सांस भरी और आगे चल दिए......!
इसके आगे का सफर हमारे डर की उम्मीदों से कही आगे था..!!
आज के ब्लॉग में बस इतना ही,जल्दी ही मिलते हैं इससे आगे के सफर में मिले अनुभव के साथ।तब तक के लिए बने रहिए हमारे साथ और हमारे प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए हमारी वेबसाइट www.royalbeebrothers.com पर जाइए।