लगातार मिल रहे आपके प्रेम के साथ विगत 21 मई को कंपनी के दो और सदस्यों के टीम के साथ शहद की खोज और आयुर्वेदा के अध्ययन के लिए हम निकलते हैं मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में स्थित सतपुड़ा के पहाड़ियों में पातालकोट के समीप बसे कुम्हड़ी गांव के लिए,जहां हमारी 6 सदस्यीय टीम पहले से सक्रिय है।
दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन से लगभग 20 घंटे की यात्रा करके 22 मई सुबह 6 बजे हम पहुंचते हैं छिंदवाड़ा जिले के परासिया रेलवे स्टेशन जहां हमारी टीम के सदस्य आनंद देहरिया गाड़ी लेकर हमारा इंतजार कर रहे थे।वहां से निकलकर कर हमें बिजौरी और फिर छिंदी(पहाड़ियों के बीच कस्बे)के रास्ते कुम्हड़ी गांव जाना था।
बिजौरी पहुंचने पर हमने टीम के बाकी सदस्यों से मुलाकात की जो पहले से वहां हमारा इंतजार कर रहे थे।
खूबसूरत वादियों में हवा की शीतलता में सर्दी के एहसास साथ गरमागरम चाय पीकर हम छिंदी पहुंचने ही वाले थे कि इतने में तेज हवाओं के साथ काले मेघ बिजली की चमक के साथ बरसने लगे,मानो हमारे स्वागत के लिए वो अपना भाव प्रकट रहे हों।
छिंदी पहुंचने पर हमारे रुकने की व्यवस्था एक पहाड़ी की चोटी पर बने वन विभाग के गेस्ट हाउस जिसे "पातालकोट विहंगम दृश्य"(Patalkot View Point) के नाम से जाना जाता है वहां पर की गई जहां से कुम्हडी गांव 5 किलोमीटर की दूरी पर था।
सामान रख कर हम गेस्ट हाउस के बरामदे में खड़े तेज बारिश के बीच वादियों की खूबसूरती का आनंद ले ही रहे थे इतने में कुम्हड़ी गांव के पटेल साहब(सरपंच/मुखिया) सपरिवार हमारे स्वागत के लिए आ पंहुचे,उनके वहां पहुंचने से ज्यादा अचंभित हम तब हुए जब पता चला की आज उनकी बेटी का विवाह है,जिसे छोड़ कर वो हमारे स्वागत के लिए आए हैं।
जहां एक तरफ हमारे घर के किसी कार्यक्रम में परिवार के सदस्यों को एक दूसरे के लिए समय नहीं रहता वहीं आदिवासियों का ये निश्छल प्रेम और सत्कार देख कर हमारे हृदय में उनके प्रति सम्मान के सागर उफान पर थे।
हमारा कुशलक्षेम जानकर उन्होंने हमें अपनी बेटी के विवाह में आने के लिए आमंत्रित किया।
हमने इस सौभाग्य को सहजता से स्वीकार किया।तब तक बारिश शांत हो चुकी थी और पहाड़ी बस्तियों में बिजली और पानी की समस्या को देखते हुए वहां ज्यादातर शादियां दिन में होती हैं तो हम तैयारी करने लगे शादी में जाने की और दोपहर के समय कुम्हड़ी गांव में पटेल जी के यहां पहुंच गए।
पटेल जी के घर में वैवाहिक समारोह जैसा उपलक्ष्य होने के बाद भी उनके और गांववासियों के सत्कार के क्रम हमे लगातार अचंभित कर रहे थे।
प्राचीन भारत की संस्कृति और संस्कार को जिंदा रखे हुए आदिवासियों की महिलाएं हमारे स्वागत के लिए सिर पर कलश रखे घर की चौखट पर खड़ी सांस्कृतिक संगीतों का गायन कर रही थीं।
इतना सांस्कारिक सत्कार हमारे जीवन में हमारा लिए पहला अनुभव था,जिसे अपना सौभाग्य मानकर हम उनके यहां विवाह में शामिल होने पहुंचे।
आदिवासियों की बस्ती में पहुंचे अभी हमें कुछ ही घंटे हुए थे और इतनी ही देर में उनके प्रेम और सौहार्द के बीच हम घुलमिल चुके थे और हमने उनके परिवार के हिस्से के रूप में शादी में चल रही रश्मों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया,महिलाओं के संगीत के साथ ढोल नगाड़ों की आवाज पहाड़ियों के बीच गुंजायमान थी।भावनाओं से भरा ऐसा नजारा देख कर हम अपने आप को ढोल बजाने से रोक नहीं पाए और फिर क्या था!कमर कसी और प्राचीन संस्कृतियों से भरे उस सैलाब में हम सराबोर होने पहुंच गए।
काफी देर ऐसे आनंदमयी क्षणों का लुत्फ उठाने के बाद हम जयमाला की रश्म में सहभागिता लेने पहुंचे और हमने देखा वहां पर जयमाला के समय शादी में आए सभी महमानो को गुड़ और पान खिलाने की प्रथा आज भी जीवित है।
आधुनिक भारत के बीच हम पहली बार प्राचीन भारत की ऐसी सभ्यताओं का अनुभव ले रहे थे जिन्हें हम कभी बुजुर्गों से कहानियों के रूप में सुना करते थे।
ऐसे आचंभिक सत्कार और सांस्कारिक संस्कृतियों का मधुरपान करते हुए हम वहां आदिवासियों के 14 गांव से आए हुए भीरिया,कुडोपा, उईके, नरैवती आदि अलग-अलग आदिवासी प्रजातियों के मुखिया से मिले और उनके साथ बैठ कर हम प्राचीन भारत की अनेकों सभ्यताओं के अनुभव के साथ शादी में चल रही रश्मो में सहभागिता लेते हुए ये कहने पर मजबूर हो गए की वास्तव में हमारा भारत सोने को चिड़िया हुआ करता था..!
आज के ब्लॉग में बस इतना ही,जल्दी ही मिलते हैं अगले ब्लॉग में पातालकोट की रहस्मयी धरती से मिले अमूल्य अनुभवों के साथ तब तक के लिए बने रहिए हमारे साथ।