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शादी वाले घर से 8:00 बजे मवई से बिछिया और बिछिया से बसनीय के लिए निकले। लगभग १० बजे बसनीय पहुंच के हम लोग अपनी १४ लोगो की टीम से मिले जो कल रात को बहराइच से आयी थी शहद निकालने के लिए और बस स्टैंड के पास बने गेस्ट हाउस में इंतजार कर रही थी । चिलचिलाती धूप में ११ बजे क करीब हम लोग अपनी और लोकल २० लोगो की टीम को लेकर हलो घाटी के जंगलो की तरफ चल पड़े जो कि यहां से 3 किलोमीटर का सफर था और यह हमें पैदल ही करना था। अब हमारी टीम का नेतृत्व रघु कर रहा है, जो शहद की कटाई का विशेषज्ञ है।
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रास्ते में पथरीले रास्तों से होते हुए एक सूखी नदी के किनारे पर हम चलते रहे और फिर हम जंगल के मुरामिक जोन में प्रवेश कर गए। मुरामिक जोन हर साल २०-२५ टन शहद की पैदावार लाता है खासकर आपिस दोरसता मधुमखिया यहाँ बहुयात में माइग्रेट हो कर आती है । जंगल में मुश्किल से ५०० मीटर चलने के बाद ही नज़ारा बदल गया। एक तो तापमान कम था और जिस भी पेड़ पे देखो तो हर डाली पर मधुमखियो के बड़े बड़े छत्ते लगे थे। जंगल में महुवा , धन्वंतरि, लाल घूमा, सोभुवना और कालकोमा के पेड़ और उसके फूल बहुआत में थे लकिन इन सब पौधों में महुवा सबसे चमत्कारिक पेड़ था । मध्य भारत के जंगलों में महुआ के फूलों से शहद की कटाई एक विशेष प्रक्रिया है, जो अद्वितीयता और सांस्कृतिक धरोहर से भरी हुई है। महुआ, जिसे मधुका लोंगीफोलिया भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण वृक्ष है, जो खासकर आदिवासी समुदायों के लिए अत्यधिक मूल्यवान है। इस पेड़ के फूल न केवल खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग होते हैं, बल्कि इनसे शहद भी तैयार किया जाता है, जो स्वाद और औषधीय गुणों में बेहद समृद्ध होता है। महुआ के फूल सफेद और सुगंधित होते हैं, जो मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं। यह फूल मार्च से मई के बीच खिलते हैं और मधुमक्खियों के लिए पराग और अमृत का मुख्य स्रोत होते हैं। महुआ के पेड़ गांवों के आस-पास और जंगलों में बहुतायत में पाए जाते हैं, जिससे शहद की कटाई एक नियमित और पारंपरिक गतिविधि बन गई है। जंगल में मधुमक्खी के छत्ते की पहचान करना एक साहसिक और कौशलपूर्ण कार्य है, जिसे एक टीम मिलकर अंजाम देती है।
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यह प्रक्रिया न केवल धैर्य और सतर्कता की मांग करती है, बल्कि इसके लिए पारंपरिक ज्ञान और तकनीकों की भी आवश्यकता होती है। रघु ने ५-५ लोगो की ८-९ टीम बनाके पूरे जोन का मुआयना करने का प्लान किया और लगभग ३ घंटे बाद सबलोग वापस मिले और अंदाजा लगाया की लगभग २०-२५ टन के आस पास का शहद होगा अभी जंगल में। हमलोगो ने दोपहर का खाना खाया और कुछ प्लान बनाया की अगले १०- १२ दिन किस तरह से शहद के छत्ते निकालेंगे , कितनी टीम बनेगी , किस दिन कौन अगवाई करेगा। और इसके अलावा रोज जंगल से निकले हुए शहद को कसबे तक ले जाना होगा। लगभग ३ घंटे के गहन चिंतन और बातचीत करके हमारा प्लान तैयार था। रोज १६-१८ घंटे काम करने थे और जितनी जल्दी हो पाए काम ख़तम करना था क्यूकी कुछ दिनों में बरसात शुरू होने वाली है। आज का काम ख़तम करके हमलोग कसबे के लिए निकल पड़े और कल सुबह से काम शुरू करना था।
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अगले दिन सुबह की ताजगी और पक्षियों की चहचहाहट के साथ, टीम ने अपनी यात्रा शुरू की। जंगल की घनी हरियाली और जीव-जंतुओं की विविधता ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। रघु ने टीम को एक सुरक्षित मार्ग पर चलने का निर्देश दिया, ताकि किसी भी संभावित खतरे से बचा जा सके। टीम ने जंगल में प्रवेश करने से पहले पूरी तैयारी कर ली थी। आवश्यक उपकरण जैसे कि धुआं उत्पन्न करने के लिए सूखी पत्तियाँ, रस्सियाँ, छत्ते काटने के लिए धारदार चाकू, और शहद संग्रहण के बर्तन साथ में ले लिए गए। सभी सदस्यों ने सुरक्षात्मक कपड़े पहन लिए ताकि मधुमक्खियों के डंक से बचा जा सके।
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जंगल में पहुंच के टीम ने कल तैयार किये गए प्लान के साथ जंगल में अलग अलग जगह चले गए और मै रघु की टीम के साथ हो लिया। कुछ समय चलने के बाद, टीम ने मधुमक्खियों की भिनभिनाहट सुनी। यह संकेत था कि छत्ता आस-पास ही है। रघु ने सबसे पहले आसपास के बड़े पेड़ों का निरीक्षण किया, क्योंकि मधुमक्खियां अक्सर ऊंचे और सुरक्षित स्थानों पर अपने छत्ते बनाती हैं। रामू और सुरेश ने पेड़ों की जड़ों और तनों की जांच की, जबकि रामदीन और लोचन ने निचले हिस्सों की तलाश की। अंततः, टीम ने एक बड़े साल के पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता पाया। यह छत्ता काफी ऊंचाई पर स्थित था और मधुमक्खियों की भारी संख्या वहां मंडरा रही थी। मधुमक्खी के छत्ते की पहचान और शहद की कटाई एक टीम का संयुक्त प्रयास होता है, जिसमें हर सदस्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह प्रक्रिया न केवल शारीरिक शक्ति और धैर्य की मांग करती है, बल्कि इसमें पारंपरिक ज्ञान और तकनीकों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस प्रकार, जंगल में मधुमक्खी के छत्ते की पहचान एक साहसिक और समृद्ध अनुभव है, जो टीम वर्क, कौशल और धैर्य का प्रतीक है। रघु ने तुरंत अपनी टीम को सावधान किया और सभी को धैर्यपूर्वक काम करने का निर्देश दिया। मधुमक्खियों के डंक से बचने के लिए धुआं उत्पन्न करने की तैयारी की गई। फटाफट रघु और राजू ने बी सूट पहना और बाकी लोगो ने मछरदानी को लगा दिया थोड़ी दूर में ताकि बाकी लोग मखियो के अटैक से बच पाए।
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रामू और सुरेश ने सूखी पत्तियों और लकड़ी को जलाकर धुआं उत्पन्न किया। धुआं छत्ते के पास ले जाया गया ताकि मधुमक्खियां शांत हो सकें। यह प्रक्रिया मधुमक्खियों को अस्थायी रूप से शांत कर देती है, जिससे शहद की कटाई थोड़ी आसान हो जाती है। रघु और राजू ने रस्सियों का उपयोग करके पेड़ पर चढ़ना शुरू किया। यह काम आसान नहीं था, क्योंकि ऊंचाई पर चढ़ते समय संतुलन बनाए रखना पड़ता है और मधुमक्खियों से भी सावधान रहना पड़ता है। रघु ने राजू को निर्देश दिया कि वह धैर्य और ध्यान से काम करे। धीरे-धीरे वे दोनों पेड़ के शीर्ष पर पहुंचे, जहां मधुमक्खियों का बड़ा छत्ता था। जैसे जैसे धुँवा ऊपर छत्ते तक पहुंच रहा था मखियाँ छत्तो से भागना शुरू करती है और जोर के भिनभिनाहट जंगल में होने लगती है। अब तक बाल्टियां रस्सी के सहारे रघु तक पहुंच चुकी थी और नीचे भी धुँवा हो चुका था लकिन फिर भी मखियाँ हमसब तक पहुंच चुकी थी और और इससे पहले हम मछरदानी में पहुंचते लगभग ३-४ मखियाँ डंक मार चुकी थी। जैसे तैसे करके हमलोग माक्चारदानी में पहुंचे और सुरेश ने किसी तरह से धुँवा और बढ़ाया , लगभग आधे घंटे में मखियाँ जा चुकी थी और ऊपर रघु और राजू ने सीजन का ताज़ा शहद भी निकाल लिया था। छत्ते सहित उसको बाल्टियों में डालने के बाद नीचे रस्सी के सहारे लटका दिया और हम सब लोगो ने बाहर आकर उसको इकठा किया और हमारी बाल्टी में था जंगल का शुद्ध, ताज़ा काले रंग का लगभग ६ किलो शहद।
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शहद निकालने के लिए छत्तों को निचोड़ा जाता है और कपडे से छान कर साफ़ बाल्टी में डाल दिया और बची हुई छत्तों को अलग बोरे में डाल लिया जिसको बाद में प्रोसेस करके वैक्स बनाया जाता है।
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जंगल में ये काम अलग अलग टीम जुटी हुयी थी और पूरे जंगल में बस माखिये को भिनभिनाहट की गूंज थी। खैर इसी तरह रघु की टीम ने दिनभर में १० - १२ छत्ते निकाले और बाकी ५ टीम ने मिलकर लगभग ८० छत्ते निकाले थे। शाम तक हमारे पास ३५० किलो शहद हो चुका था और सभी लोग थक चुके थे। सारा सामान और शहद से भरी हुई बाल्टियां वगैरह लेकर हमलोग वापस अपने ठिकाने के तरफ चल पड़े। कल फिर आना है और ये प्रक्रिया लगभग १०-१२ दिन चलेगी। शहद की कटाई केवल एक कार्य नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मानव के बीच एक गहरे संबंध को दर्शाता है। मधुमक्खियां परागण के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में मदद करती हैं और उनके द्वारा उत्पन्न शहद मानव के लिए एक अनमोल उपहार है। शहद की कटाई आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्रक्रिया न केवल उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाती है, बल्कि उनके पारंपरिक ज्ञान और कौशल को भी संरक्षित रखती है। इस काम को करते समय हमें प्रकृति का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए। जल्दी ही मिलते हैं अगले जंगल में |